मानु ने मानु
पंकज बाबू एक टा उत्तम कविता लिखलाह अछि.
कविताक शीर्षक अछि मानु ने मानु. अहि ठाम किछु अंश उद्धृत का रहल छी:
मानु ने मानु,
नव चेतना स दूर,
हम मैथिल मजबूर,
सभ्य होबाक मुखौटा लगौने,
स्वयं अपन रीढ़क हड्डी तोरै छि,
जगलो में किछ नई बुझै छि,
युवा छि,
पर साहस कहाँ ?
स्वाभिमान बनेबाक
सामर्थ्य कहाँ ?
समय संग चलैक,
दृष्टी कहाँ ?
प्रतिकार करैक,
तर्क कहाँ ?
…..
पूर्ण कविता अहि ठाम पढि सकैत छी मैथिल मिथिला मैथिली
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