अंतर्जातीय बियाह आ मैथिल ब्राम्हण
मैथिल ब्राम्हण समुदाय में एक टा बात होइत छैक — बियाह-दान कोनो मैथिल ब्राम्हने सं करैत छथि.
हम, पता नहिं कियैक, बच्चे सं दहेजक विरुद्ध छलहूँ. गिनती त याद नहिं मुदा कतेको बेर पिताश्री आ माताश्री स अहि बात पर बहस भेल. हमर मुंह हमेशा एक्के टा बात सं बंद करवा देल जाइत छल — जं बेटा बाप के बातक मान नहिं राखय तं, बेटा तू अप्पन जिनगी देख हम अप्पन जिनगी देखैत छी.
हमर विवाहक समय एलैक.. हम घर में सभ के संकेत देलिअन्ही जे हम दहेज़ लय विवाह करबाक पक्ष में नहिं छी. मुदा घर में सभ लोक के इच्छा देखि बहुत विरोध नहिं क पेलहूँ (अकर पश्चाताप जिनगी भरि रहत ). हँ तखन विरोधक फल ई भेटल जे घरक लोक पाई दिस कम आ कनियाँ दिस ज्यादा जोर देलखिन्ह, आ हमर विवाह विश्वक सभ सं सुन्नरि (हमरा मुताबिक़, लोकक मत भिन्न भ सकैत छन्हि ) आ सुलझल (गुण – अवगुण तं सभ में होइत छैक) कन्या सं भेल. हँ घरक लोक के बस सांकेतिक मुद्रा ( तैयो लाख में) सं संतोष करय परलन्ही.
चलू ई त भेल हम्मर गप्प, सभ तरहें बढ़िया भ गेल, भगवान आ श्रेष्ठ आ कनिष्ठ लोकनि के आभार व्यक्त क ली.
सभ केओ (वर आ कनियाँ) एहन भाग्यशाली नहीं होइत अछि. ने सभ कन्यां के बाप के लाखक-लाख रुपैया होइत छैक जे ओ अपना कन्याक जोग वर खोजि लेताह.
हम अहि बीच में कतेको पुत्रक पिता आ माता, छोट भाई के ज्येष्ठ भ्राता सं बात केलहुं, सभ गोटे एक्के टा बात कहलाह — कन्या त सुन्दर सुशील आ सर्वगुण संपन्न होबाके चाही, मुदा ताहि सं पाई के महत्व कम नहीं भ जाइत छैक.
हम कतेको टा सर्वगुण सम्पन्न (लोकक मत भिन्न भ सकैत छन्हि) कन्या के बियाह आपेक्षिक रुपें ढ़हलेल वर सं होइत देखलियैक. आ हाँ, कतेको योग्य वर के आपेक्षिक रुपें ढ़हलेल कनियाँ सं होइत देखलियैक आ नित्यप्रति देखि रहल छियैक.
मूल में बस एक्के टा बात जे सभ के पाई चाही. पाई कियैक चाही? कारण निम्न में सं कोनो अथवा सभ भ सकैत छैक:
१. सभ टा सौख-मनोरथ पूरा करबाक छन्हि
२. अपना जेबी सं वरक घर के लोक पाई नहि खर्च करथिन
३. बेटा के पोस-पाल आ पढ़ाब-लिखाब में जे खर्च भेल छन्हि से सभ टा अखने ऊपर करबाक छन्हि
४. बेटी के हिस्सा त बाप-भाई बांटि क देथिंह नहि
५. गाम में फलना के बेटा के ओतेक भेटलैक — तेन हुनका त आरो ज्यादा चाही.
६. कनियाँ काल्हि भेने की हेती से के जाने गेल, पाई त ल ली.
७. बेटी के बियाह त कत्तहु करबे करताह, आ बिना पाई के करतन्हि के?
कतेको कन्या कुमारि रहि रहल छैक, कारण हुनक घरक लोक आपेक्षिक रुपें ढ़हलेल वर सं बियाह करय लेल तैयार नहीं छथिन्ह आ जेबी में पाई छन्हि नहि.
हम सोचि रहल छलहूँ, जे जौं सुयोग्य वर मैथिल समाज सं बाहर बिना पाई के बियाह करय लेल तैयार छथि त कियैक नहीं करी?
कन्या के बाप आ भाई के पास पाई छैक नहिं आ कन्या के गुण के मैथिल-ब्रह्मण समुदाय में कोनो कदर नहि छैक, त ओ आपेक्षिक रुपें ढ़हलेल वर सं कियैक बियाह करत? कियैक ने आन समुदाय में करत, जत ओकर गुणक कदर छैक?
अहि में दोष की? आखिर मनुक्ख के चाही की? सुख आ शांति?
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