मैथिल आ आत्महीनता
होली में हम गाम गेल छलहुं. अबैत काल कनियाँ के कहलियन्हि – हमरा रस्ता में खेबाक लेल बगिया बना दिय.
ओ कहलन्हि – केहन लागत, रस्ता में बगिया खाइत लाज नहिं लागत.
हम कहलियन्हि, अपन खान-पान में लाज केहन?
ओ हिम्मत नहियें जुटा पेली – आ हम रोटी-भुजिया ल संतोष केलहुं (आ ओ गौरवान्वित भेलीह).
पछिला शुक्र के हमरा कार्यालय में पौटलक लंच के आयोजन कैल गेल छल.
हमर शुरू सं आदति रहल जे यथा संभव – मैथिल सभ्यता, संस्कृति, पकवान, रहन-सहन इत्यादि के अन्य संस्कृति आ भाषा-भाषी लोकनि के बीच प्रचार-प्रसार करवा में मौका के पूरा-पूरा फायदा उठाबैत छी. घर सं एलहुं त कार्यालय के सहयोगी सभ लेल कोनों मैथिल पकवान ल क एलहुं – जेना की खजुरी, ठकुआ, खाजा इत्यादि.
हाँ, त बात करैत छलहुं पौटलक लंच के आयोजन के.
हम कार्यालय में सहयोगी सभ के कहलियन्हि जे हम बगिया बना क लायब. सभ सहयोगी बड़ी उत्सुक भेलैथ बगिया खेबाक लेल.
घर आबि कनियाँ के बतेलियेन्ही – हुनका बड़ी अटपट लगलन्हि आ लगले भौजी के फोन केलखिन – हुनक विचार यैह – जे बगिया खेतै के?
खैर – बड्ड मान-मनुहार के बाद कनियाँ बगिया बनाबय लेल तैयार भेली.
१७ मई के भोरे-भोर उठलहूँ – आ कनियाँ के मदद केलियन्हि – ७५ टा बगिया बनाबय में. आ ल क पहुंचलहुं कार्यालय.
जिनका सभ के मालूम रहन्हि – जे हम बगिया ल क एलहुं अछि – से पुछि क – ल क स्वाद लेलाह.
बाकी लोक बगिया के हाथ नहिं लगबथि – कारण? सभ के होन्ही जे – इडली बनाब में ओकर आकार बिगडि गेल छै,
हम कंपनी के सीईओ, प्रोडक्ट हेड आ किछु आर लोक सं आग्रह केलियन्हि – जे बगिया के स्वाद लिय – मिथिलांचलक विशेष पकवान छै.
आ लगभग लोक ओकर स्वाद लेलक – आ संगहि बगिया आ मिथिला चर्चाक विषय बनल २ घंटा धरि.
हम बहुत दिन सं ई महसूस क रहल छी जे मैथिल सभ में आत्महीनता बहुत गहींर तकि बैस चुकल अछि.
मैथिल लोकनि अपन भाषा, अपन खान-पान, अपन परंपरा आ अपन लिपि सभ के निम्न कोटि के मानैत छथि.
किछु उदाहरण दैत छी:
१. अहाँ कोनों मैथिल सं कार्यालय में मैथिली में बात करबाक कोशिश करू – या त ओ मना क देता या अहाँ सं कन्नी काटि लेता.
२. अधिकाँश मैथिल के मिथिलाक्षर (तिरहुता) लिपि देखाबियौंह – ओ झट द कहता – ई बंगला अछि
३. मैथिल पकवान – बगिया आ ठकुआ – कतेक लोक के खाइत देखलियै?
४. आन भाषा-भाषी लग कतेक लोक के अपन भाषा में बात करैत देखलियै?
बगिया के लोक इडली के बिगरल रूप कियैक बुझलक? हम सभ अपन खान-पान के प्रचार कियैक नहिं करैत छी? सोचनीय विषय अछि.
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