गंगा, गंगा-यमुना आ सरस्वती – तीन प्रकारक बियाह वा दांपत्य
गंगा , यमुना आ सरस्वती नदी के नाम त हम सभ जनैत छी.
सत्य कहू त – इ तीनु नदी तीन तरहक दाम्पत्य वा बियाह के प्रकार अछि.
बियाह के तीन प्रकार होइत छैक:
१. गंगा
२. गंगा-यमुना
३. सरस्वती
१. गंगा बियाह
गंगा नदी के उद्गम दू टा नदी भगिरथी आ अलकनंदा के मिलि क भेल छैक.
भगिरथी नदी के उद्गम गंगोत्री छैक आ लगभग २०५ किलोमीटर के अपन स्वतंत्र पहिचान छैक. अलकनंदा नदी के उद्गम सप्त्पंथ छैक आ लगभग १९० किलोमीटर के अपन स्वतंत्र पहिचान छैक.
दुनु नदी अपन मस्ती करैत – अप्पन-अप्पन बचपन आ जवानी के भाई-बंधू-सखी-बहिनपा [बहुत रास नदी सभ, दुनु किनार पर जंगल आ पहाड़ सभ] – के संग जिनगी बिताबैत रुद्रप्रयाग तकि के सफ़र तय करैत छथि.
रुद्रप्रयाग में दुनु के मिलन होइत छन्हि – आ दुनु अप्पन पहिचान आ किनार छोडि – गंगा मे परिवर्तित भ आगा बढ़ि जाइत छथि – नव जीवन, नव रूप, नव पहिचान – जीवन पर्यंत.
२. गंगा – यमुना बियाह
गंगा रुद्रप्रयाग में जन्म लैत छथि – आ पहाड़ में यौवन के मस्ती करैत – मैदानी क्षेत्र में अपन जिम्मेदारी के निर्वहन करैत आगा बढ़ैत छथि.
यमुना यमुनोत्री में जन्म लैत छथि – आ पहाड़ में यौवन के मस्ती करैत – मैदानी क्षेत्र में अपन जिम्मेदारी के निर्वहन करैत आगा बढ़ैत छथि.
गंगा आ यमुना के मिलन प्रयाग में होइत छैक – यमुना, गंगा में पूर्ण रूपेण समर्पित भ जाइत छथि – अप्पन पहिचान आ किनार छोडि – आ जीवन पर्यंत अपन पहिचान गंगा में समर्पित क दैत छथिन्ह.
अपना संस्कृति में गंगा-यमुना मिलन के बड्ड दिव्य मानल जाइत छैक – एहन संगम के दर्शन आ प्राप्ति के बड्ड लालसा.
३. सरस्वती बियाह
ओना त लोकोक्ति आ वेद में सरस्वती के सेहो गंगा में मिलल बताओल जाइत छैक – मुदा आइ केओ विश्वास करबा लेल तैयार नहिं.
सरस्वती नदी के उद्गम शिवालिक में छैक – सरस्वती नदीक दुनु किनार – अप्पन अप्पन पहिचान – अप्पन-अप्पन बचपन आ जवानी के भाई-बंधू-सखी-बहिनपा [दुनु किनार पर जंगल, पहाड़ आ गाम-घर सभ] के छोड़बा लेल तैयार नहिं.
दुनु किनार – अप्पन अप्पन पहिचान – अप्पन-अप्पन बचपन आ जवानी के भाई-बंधू-सखी-बहिनपा के याद में मन्त्रमुग्ध.
कहल जाइत छैक जे कहियो – टोंस, यमुना आ सतलज नदी सरस्वती के संगे-संग बहैत छल – समय बितलैक – सभ सहयोगी नदी – या त कोनो नदी के संग मिलि नव पहचान बनेलक या फेर ककरो संग मिलि अपन पहिचान समर्पित केलक.
मुदा सरस्वती के दुन्नु किनार – अप्पन अप्पन पहिचान – अप्पन-अप्पन बचपन आ जवानी के भाई-बंधू-सखी-बहिनपा के याद में मन्त्रमुग्ध.
आब सरस्वती नदी के अस्तित्व के केओ स्वीकार करबा लेल तैयार नहिं – केओ ओकरा घग्घर कहैत छैक, केओ ओकरा हरका – केओ ओकरा नदी मानबाक लेल तैयार नहिं.
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