अहाँ, लोक आ लोकक अपेक्षा
एकटा अनुभव अहाँ सभ लोकनि केने होयब – लोक (अपन आ परार) अहाँक जीनगी सं सदिखन नव अपेक्षा राखैत छथि – पहिल पुरा भेल नहिं की दोसर अपेक्षा शुरू।
पहिला कक्षा स दशम कक्षा धरि – सभक जिज्ञासा रहैत छन्हि – दशम कक्षा पास भेला उपरांत की करब? साइंस, कॉमर्स आ आर्ट में स की पढब?
साइंस पढब? मैथ्स आ की बॉयोलॉजी?
बढियाँ बात – की कहलहुँ डाक्टर बनब? बड्ड नीक।
की कहलहुँ इंजीनियर बनब? इंजीनियर सेहो नीक टका कमाइत छै – मुदा डाक्टर के बाते अलग होइत छै।
कॉमर्स? सीए बनब आ की सीएस? बौआ सोचि ले – ८-१० साल लागि जाइत छै – किछू लोक कइयो नै पबैत छै।
आर्ट्स? ठीक छै – पढनाइ कहीँ बेकार गेलैये?
डाक्टरी, इन्जीनियरी, सीए, कीदन, कहाँदन के पढाइ पूरा भेल नहिं की नव जिज्ञासा शूरू – नौकरी कहिया स शुरू करब? कतेक टका भेटत?
नौकरी आ की अपन व्यवसाय शूरू होइत-होइत नव प्रश्न शुरू – यौ बियाह कहिया करब?
कुल मिला कs तथ्य एक टा – अहाँ की सोचैत छी, अहाँ के अपन जीनगी सं की अपेक्षा अछि – लोक के कोनो विशेष माने-मतलब नहिं छै। जं अहाँ के उत्तर हूनका अपेक्षा अनरूप छन्हि त बड्ड नीक – नहिं त तू अपना घर आ हम अपना घर।
हाँ- एक टा बात आरो – जं अहाँ के उत्तर में कोनो मसल्ला भेंटि जाइ – जे लोक के चहटगर बना कs बाँटल जा सकै तs – रमनगर!!!!
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