बियाह पंचमी
दु-तीन साल पहिले एक टा मित्र सपत्नीक भेंट भेलाह। बाते-बात में चर्च उठल बियाहक – हम कहलियनि – हमर बियाह, बियाहपंचमी के भेल अछि।
हमर मित्रक पत्नी के इ बात नहिं पचलन्हि – ओ हमर कनियाँ सं दु बेर पुछलखिन्ह – सत्ते? दुनू बेर कनियाँक उत्तर हाँ में सुनला पर ओ कहि उठलखिन – मिथिला में बियाह पंचमी के बियाह?
अपना समाज में बियाह पंचमी के बियाहक लेल खराप दिन मानल जाइत छै – लेकिन कियैक?
रामक दुर्भाग्य आ की सीता के ? कहीं दुनू के त नहिं ? आ की सीता आ रामक सासुरक लोक के?
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