फगुआ माने?
सभ सं पहिने अहाँ सभ के फगुआ आ नव वर्ष के मंगल कामना ।
किछु नवतुरिया के लेल अहि ठाम बता दी – फगुआ अपन सभहक नव वर्ष के आगमन के उपलक्ष्य में मनाओल जाइत अछि।
अहि बेर फगुआ सं दु-चारि दिन पहिने गाम पहुँचबाक सौभाग्य भेटल। पछिला २-३ दिन सं बहुतेक लोक परेशान छलाह – होली कहिया? २३ मार्च आ की २४ मार्च के? बुध के आ की बृहस्पति के?
मोने-मोन सोचि रहल छलहुँ, लोक सभ अहि सभहक बदला चैतक कृष्ण पक्षक परिवा कोन दिन पड़तै से चर्च कियैक नहिं करैत अछि?
बात करैत छलहुँ फगुआ के – इ सामूहिक पावनि छै – अहाँ अकेले त खेलब नहिं – सामूहिकता के संग देबहि पड़त।
किछु लोक एला – बृहस्पति के होली केना खेलब यौ? बृहस्पति के माछ-मांस त खायब नहिं – बिना माछ-मांस के होली केना?
हमर माथ ठनकल – बृहस्पति के माछ-मांस सं कोन संबंध? बृहस्पति त बेचारे एकटा सामान्य पदधारी देव-गुरु छथि – दंत हीन, विष हीन। बृहस्पति दिन जीवक हत्या क अोकर मुर्दा भक्षण केला सं भक्ष्य के मोक्ष नहिं भेटतै आ की भक्षक के? एहन त नहिं जे दूनू के भेटि जेतै?
किछु लोक एला – होली त बृहस्पति के खेलs पड़त, मुदा माछ-मांस के की करब? एह, माछ-मांस बुध के खा लैत छी, होली दिन पुआ आ पनीर-कटहरक तीमन सं काज चला लेब। कुल मिला क मुर्दा भक्षण नहिं छोड़ब।
एकटा बात आर अछि – खबरि आयल – गामक ब्राह्मण आ किछु आन जाति बृहस्पति – माने की २४ मार्च – माने की चैतक कृष्ण पक्षक प्रतिपदा के होली मनेताह। आ बाकी लोक बुध – माने की २३ मार्च – माने की फागुनक पूर्णिमा के मनेताह।
उपरका खबरि एकटा बड़का सामाजिक बदलाव के प्रमाण देलक – फगुआ/पावनि – तिहार के दिन चुनबाक विषय पर ब्राह्मण जाति के वर्चस्व खतम।
देखियौ – अगिला फगुआ कोन रंग देखबैत अछि।
अहि आशा के संग की अगिला फगुआ के दिन चुनबा में माछ-मांस के कोनो भूमिका नहिं रहत – एक बेर फेर सं अहाँ सभ क फगुआ आ नव वर्ष के मंगल कामना।
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